जिला कांगड़ा की तहसील खुंडिंयां के गांव लोअर अंबाड़ा मैं गत 14 अगस्त को हुई भारी बारिश गांव वासियों के लिए दिक्कतों का पहाड़ बनकर आई। रात से बरस रहे मेघ केवल पानी ही नहीं बरसा रहे थे बल्कि लोगों के पैरों तले जमीन भी खिसका रहे थे। मामला इतना खौफनाक बन जाएगा इसका अाभास तो उन्हें तब भी नहीं हुआ जब सुबह लगभग 6:00 बजे उन्होंने अपने आंगन व बरामदों में छोटी-छोटी दरारें देखी जब दरारें धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और देखते ही देखते उनके घरों व मवेशी खानों की दिवारें फटना शुरू हो गई कुछ पुराने व कमजोर मकान व मवेशी खाने देखते ही देखते भरवरा कर नीचे गिरने लग पड़े। आंखों के सामने खौफ़नाक दृश्य देख ग्रामीण कुछ समझ पाते तब तक देर हो जाती व भारी बारिश में लोगों ने अपने दुधमुहें छोटे-छोटे बच्चों अपने बीमार बुजुर्गों माता-पिता दादा दादियों को बाहर निकलना शुरू कर दिया । भारी बारिश मैं खुले आसमान के नीचे यह लोग अपने तमाम कुनवे को लेकर बाहर निकल गए परंतु अफसोस जिस भूमि पर वो खड़े थे वो भी उनके पैरों तले से खिसक रही थी और कब फट कर उन्हें निगल ले दहशत में जान थी चीख कर चिल्ला कर गले रूंध गए थे आखिर सुने तो सुने कौन हर कोई इसी मुश्किल से जूझ रहा था। ऊपर छत तो क्या नीचे ज़मीन भी अपनी नहीं थी गांव का रास्ता हर पगडंडी तहस-नहस हो गई थी पेड़ पौधे भी खतरे की घंटी दे रहे थे गांव की हर डाली हर पत्ता थर्रा गया था व ज़र्रा ज़र्रा दरक रहा था ऐसे लग रहा था मानो उनके बचपन की यह भूमि आज यहां से दरक कर नीचे बहते नाले में समा जाएगी। गर्मी धूप ठंड व बारिश से बचने के लिए तमाम जमा पूंजी खर्च करके बनाए उनके आशियाने मौत का खंडहर बन चुके थे। गांव के कुछ युवकों ने भारी बारिश में जैसे-तैसे करके लोगों को गांव के थोड़ा दूर एक सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया परंतु भारी बारिश मैं खुले आसमान के नीचे कोई भी सुरक्षित ना था । दुख की वो बेला ऐसे तैसे कट गई दर्द भरे दर्द भरे वो लम्हे किसी तरह कट गए वक्त निकला प्रशासन ने भी तत्परता दिखाई थोड़ी दूरी पर स्थित एक प्रशिक्षण संस्थान में उन्हें ठहराया गया जहां वह सरकार व दानी सजनों की दया पर निर्भर होकर जीवन यापन को मजबूर हैं उनका जीवन यहीं चल रहा है कुछ मवेशी आदि पुराने ही स्थान पर हैं। गांव के कुछ युवा व साहसी उन्हें घास पानी दे रहे हैं बाकी सब भगवान के सहारे पर छोड़ दिया गया है। बच्चों का स्कूल छूट गया है नौजवानों का रोजगार बीमार बुजुर्गों का जीवन दुश्वार हो गया है फसल भी तहस-नहस हो गई है। गांव की भयंकर घटना की खबर सुनकर बाहर देश में नौकरी पेशा कर रहे गांव के नौजवान अपने भविष्य की परवाह किए बिना वापिस अपनों के पास लौट आए हैं अब उन्हें फिर से काम मिलेगा इस बात की चिंता उन्हें भी सता रही है लेकिन क्या करें पहले अपनों को बचाना था कहीं ना कहीं आशियाने में वापस जाना था । यह तो जाहिर है कि अब वापस उनका गांव में लौट पाना मुश्किलों भरा लग रहा है क्योंकि यह गांव कभी भी किसी भी समय दरकने की स्थिति में आ गया है और अभी यह जगह रहने के लिए महफूज भी नहीं है लिहाजा यह लोग सरकार पर निर्भर हैं व टकटकी लगाए देख रहे हैं कि कब हुक्मरान इनकी पुनर्स्थापना के लिए ठोस कदम उठाएं और कहीं सुरक्षित जगह पर ले जाकर फिर से बसाएं। क्योंकि जिस संस्थान में वह ठहरे हैं वह भी बच्चों के पढ़ने के लिए जगह बनाई गई है और जल्दी से जल्दी वहां भी बच्चों को पढ़ना है और उन्हें वहां से खाली करना है। सरकार के रहमों करम पर आश्रित अब यह लोग दिन रात इंतजार में हैं कि पहले की तरह चल रहा उनका सुखमय जीवन उन्हें दोबारा देखने को भी मिलेगा या कि ऐसे ही शरणार्थी बनकर जीवन व्यतीत करना पड़ेगा। जब तक सरकार इनके पलायन का या इन्हें दुबारा बसाने का कोई फरमान जारी नहीं करती तब तक इनके आगे अंधेरा ही अंधेरा है। हिमाचल तहलका न्यूज़ की भी हिमाचल सरकार से प्रार्थना है कि वह शीघ्र अति शीघ्र लोअर अंबाड़ा गांव के ग्रामीणों को पुनर्स्थापित करें एवं उनके खुशहाल जीवन में खुशियां लाए दानी सजनों से भी अपील है कि वह भी बढ़ चढ़कर आगे आए व तंग हाल स्थिति में जीवन यापन कर रहे इन लोगों की सहायता के लिए हाथ बढ़ाएं यही सच्ची देश सेवा है और यही सच्ची मानव सेवा है। हिमाचल में बेलगांव बरसाते इन मेघाें दरकते पहाड़ों ऊफनते दरिया खड्ड नालों को देखते हुए अब प्रदेश सरकार के साथ केंद्र सरकार को भी इस ओर गहनता से विचार करना चाहिए क्योंकि पूरा हिमाचल इस साल पानी की चपेट में बिना आए नहीं रह पाया है। मजबूत माने जाने वाले हिमाचल के पहाड़ इस बार जिस कदर दरके हैं इन्होंने कहीं ना कहीं सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर इसका कारण क्या है क्या बेशुमार किया जा रहा खनन या कि हर जगह चल रही जेसीबी पोकलेन या सड़क निर्माण में जगह-जगह किए जा रहे विस्फोट या कोई और वजह है इसके लिए तो सरकार को जांच भी करवाना चाहिए और समय रहते इससे बचने के उपाय भी जरूरी है अन्यथा वह दिन दूर नहीं के इन सुंदर पहाड़ों में जीवन ही मुश्किल हो जाए और लोग कहीं ना कहीं पलायन को मजबूर हो जाएें। दरकने से तहस-नहस हो गया खुंड़ियां का लोअर अंबाड़ा गांव शरणार्थी बनकर जीवन जी रहे ग्रामीण जिला कांगड़ा की तहसील खुंडिंयां के गांव लोअर अंबाड़ा मैं गत 14 अगस्त को हुई भारी बारिश गांव वासियों के लिए दिक्कतों का पहाड़ बनकर आई। रात से बरस रहे मेघ केवल पानी ही नहीं बरसा रहे थे बल्कि लोगों के पैरों तले जमीन भी खिसका रहे थे। मामला इतना खौफनाक बन जाएगा इसका अाभास तो उन्हें तब भी नहीं हुआ जब सुबह लगभग 6:00 बजे उन्होंने अपने आंगन व बरामदों में छोटी-छोटी दरारें देखी जब दरारें धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और देखते ही देखते उनके घरों व मवेशी खानों की दिवारें फटना शुरू हो गई कुछ पुराने व कमजोर मकान व मवेशी खाने देखते ही देखते भरवरा कर नीचे गिरने लग पड़े। आंखों के सामने खौफ़नाक दृश्य देख ग्रामीण कुछ समझ पाते तब तक देर हो जाती व भारी बारिश में लोगों ने अपने दुधमुहें छोटे-छोटे बच्चों अपने बीमार बुजुर्गों माता-पिता दादा दादियों को बाहर निकलना शुरू कर दिया । भारी बारिश मैं खुले आसमान के नीचे यह लोग अपने तमाम कुनवे को लेकर बाहर निकल गए परंतु अफसोस जिस भूमि पर वो खड़े थे वो भी उनके पैरों तले से खिसक रही थी और कब फट कर उन्हें निगल ले दहशत में जान थी चीख कर चिल्ला कर गले रूंध गए थे आखिर सुने तो सुने कौन हर कोई इसी मुश्किल से जूझ रहा था। ऊपर छत तो क्या नीचे ज़मीन भी अपनी नहीं थी गांव का रास्ता हर पगडंडी तहस-नहस हो गई थी पेड़ पौधे भी खतरे की घंटी दे रहे थे गांव की हर डाली हर पत्ता थर्रा गया था व ज़र्रा ज़र्रा दरक रहा था ऐसे लग रहा था मानो उनके बचपन की यह भूमि आज यहां से दरक कर नीचे बहते नाले में समा जाएगी। गर्मी धूप ठंड व बारिश से बचने के लिए तमाम जमा पूंजी खर्च करके बनाए उनके आशियाने मौत का खंडहर बन चुके थे। गांव के कुछ युवकों ने भारी बारिश में जैसे-तैसे करके लोगों को गांव के थोड़ा दूर एक सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया परंतु भारी बारिश मैं खुले आसमान के नीचे कोई भी सुरक्षित ना था । दुख की वो बेला ऐसे तैसे कट गई दर्द भरे दर्द भरे वो लम्हे किसी तरह कट गए वक्त निकला प्रशासन ने भी तत्परता दिखाई थोड़ी दूरी पर स्थित एक प्रशिक्षण संस्थान में उन्हें ठहराया गया जहां वह सरकार व दानी सजनों की दया पर निर्भर होकर जीवन यापन को मजबूर हैं उनका जीवन यहीं चल रहा है कुछ मवेशी आदि पुराने ही स्थान पर हैं। गांव के कुछ युवा व साहसी उन्हें घास पानी दे रहे हैं बाकी सब भगवान के सहारे पर छोड़ दिया गया है। बच्चों का स्कूल छूट गया है नौजवानों का रोजगार बीमार बुजुर्गों का जीवन दुश्वार हो गया है फसल भी तहस-नहस हो गई है। गांव की भयंकर घटना की खबर सुनकर बाहर देश में नौकरी पेशा कर रहे गांव के नौजवान अपने भविष्य की परवाह किए बिना वापिस अपनों के पास लौट आए हैं अब उन्हें फिर से काम मिलेगा इस बात की चिंता उन्हें भी सता रही है लेकिन क्या करें पहले अपनों को बचाना था कहीं ना कहीं आशियाने में वापस जाना था । यह तो जाहिर है कि अब वापस उनका गांव में लौट पाना मुश्किलों भरा लग रहा है क्योंकि यह गांव कभी भी किसी भी समय दरकने की स्थिति में आ गया है और अभी यह जगह रहने के लिए महफूज भी नहीं है लिहाजा यह लोग सरकार पर निर्भर हैं व टकटकी लगाए देख रहे हैं कि कब हुक्मरान इनकी पुनर्स्थापना के लिए ठोस कदम उठाएं और कहीं सुरक्षित जगह पर ले जाकर फिर से बसाएं। क्योंकि जिस संस्थान में वह ठहरे हैं वह भी बच्चों के पढ़ने के लिए जगह बनाई गई है और जल्दी से जल्दी वहां भी बच्चों को पढ़ना है और उन्हें वहां से खाली करना है। सरकार के रहमों करम पर आश्रित अब यह लोग दिन रात इंतजार में हैं कि पहले की तरह चल रहा उनका सुखमय जीवन उन्हें दोबारा देखने को भी मिलेगा या कि ऐसे ही शरणार्थी बनकर जीवन व्यतीत करना पड़ेगा। जब तक सरकार इनके पलायन का या इन्हें दुबारा बसाने का कोई फरमान जारी नहीं करती तब तक इनके आगे अंधेरा ही अंधेरा है। हिमाचल तहलका न्यूज़ की भी हिमाचल सरकार से प्रार्थना है कि वह शीघ्र अति शीघ्र लोअर अंबाड़ा गांव के ग्रामीणों को पुनर्स्थापित करें एवं उनके खुशहाल जीवन में खुशियां लाए दानी सजनों से भी अपील है कि वह भी बढ़ चढ़कर आगे आए व तंग हाल स्थिति में जीवन यापन कर रहे इन लोगों की सहायता के लिए हाथ बढ़ाएं यही सच्ची देश सेवा है और यही सच्ची मानव सेवा है। हिमाचल में बेलगांव बरसाते इन मेघाें दरकते पहाड़ों ऊफनते दरिया खड्ड नालों को देखते हुए अब प्रदेश सरकार के साथ केंद्र सरकार को भी इस ओर गहनता से विचार करना चाहिए क्योंकि पूरा हिमाचल इस साल पानी की चपेट में बिना आए नहीं रह पाया है। मजबूत माने जाने वाले हिमाचल के पहाड़ इस बार जिस कदर दरके हैं इन्होंने कहीं ना कहीं सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर इसका कारण क्या है क्या बेशुमार किया जा रहा खनन या कि हर जगह चल रही जेसीबी पोकलेन या सड़क निर्माण में जगह-जगह किए जा रहे विस्फोट या कोई और वजह है इसके लिए तो सरकार को जांच भी करवाना चाहिए और समय रहते इससे बचने के उपाय भी जरूरी है अन्यथा वह दिन दूर नहीं के इन सुंदर पहाड़ों में जीवन ही मुश्किल हो जाए और लोग कहीं ना कहीं पलायन को मजबूर हो जाएें।
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