November 22, 2024

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जल शक्ति मंत्रालय की टीम ने पीपली में ड्रैगन फल के बगीचे का किया दौरा

ऊना, 26 अक्तूबर। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय से कैच द रेन अभियान 2024 की दो सदस्यीय टीम ने विकास खंड बंगाणा के तहत पीपली गांव में ड्रैगन फल के बगीचे का दौरा किया। दो सदस्यीय टीम में निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार और वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण कुमार शामिल रहे। इस दौरान उन्होंने ड्रैगन फल की खेती में प्रयोग किए जा रहे सभी उर्वरकों और उसके रखरखाव बारे विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त की।उद्यान विभाग के उप निदेशक डॉ केके भारद्वाज ने दो सदस्यीय टीम को बताया कि ड्रैगन फल के बगीचे लगाने के बाद इसका रखरखाव ग्रामीण विकास विभाग की नरेगा स्कीम के तहत किया जा रहा है। उन्होंने जानकारी दी कि बागवानी विभाग द्वारा एमआईडीएच स्कीम के तहत अगस्त 2023 में पीपली के किसानों की पचीस कनाल भूमि पर सुपर फ्रूट कहे जाने वाले फल ड्रैगन के ताइवान पिंक किस्म के 3300 पौधों का बगीचा लगाया गया था। विभाग द्वारा जानवरों की रोकथाम के लिए कम्पोजिट फेंसिंग, सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली, भूमि का विकास, कंक्रीट के पोल तथा ड्रैगन के उच्च किस्म के पौधे किसानों को उपलब्ध करवाए गए है। उप-निदेशक बागवानी डॉ के के भारद्वाज द्वारा बताया गया कि ड्रैगन फ्रूट इन दिनों अपनी अनूठी बनाबट, मीठे स्वाद, कुरकुरे टेक्सचर और उच्च एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण प्रसिद्ध हो रहा है। यह फल कैल्शियम और आयरन जैसे पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत है। इसमें वसा, कोलेस्ट्रॉल और सोडियम का स्तर बिलकुल भी नहीं या बहुत कम होता है। यह पौधा उच्च जैविक या अजैविक तनाव स्तरों की स्थितियों में भी उच्च उत्पादकता बनाए रखने की अपनी खासियत के लिए जाना जाता है। इसलिए इसे उपभोक्ताओं के अच्छे स्वास्थ्य और उत्पादकों की आय का अच्छा स्रोत माना जा रहा है।डॉ भारद्वाज ने बताया कि फल का पौधा कैक्टस परिवार का सदस्य है स इसकी प्रकृति बारहमासी है और यह 15-20 साल या उससे अधिक समय तक जीवित रह सकता है। इसे 1990 के दशक के अंत में कुछ उष्णकटिबंधीय अमेरिकी देशों से भारत में लाया गया था। हाल के वर्षों में कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और पंजाब के कुछ किसानों ने ड्रैगन फ्रूट की खेती को अपनाया है। ड्रैगन फ्रूट मध्यम से बड़े आकार के होते हैं और इनका रंग लाल होता है। ताजा खाने के अलावा ड्रैगन फ्रूट का उपयोग जैम, आइसक्रीम, जैली, पेय, जूस, नैक्टर, वाइन आदि बनाने के लिए भी किया जा सकता है।इस अवसर पर बीडीओ बंगाणा सुशील कुमार, अधिशाषी अभियंता ग्रामीण विकास विभाग बंगाणा डॉ वीरेंद्र भारद्वाज, बागवानी विकास अधिकारी बंगाना अनुपम शर्मा, बागवानी प्रसार अधिकारी, प्रधान ग्राम पंचायत बल्ह तथा किसान रोशन लाल, मदनलाल, प्रेमवती और दीप कुमार उपस्थित रहे।