ऊना – कृषि में अच्छा उत्पादन अर्जित करने की इच्छा ने पिछले कुछ वर्षों से किसानों को मंहगे रसायनांे का इस्तेमाल करने के लिए बाध्य किया है। लेकिन मंहगे खरपतवारों और कीटनाशकों का अधिक मात्रा में प्रयोग करने से न केवल कृषि लागत बढ़ी है बल्कि इससे पर्यावरण और ज़मीन को भी भारी क्षति पहुँच रही है। इसके अलावा रसायनों का लगातार उपयोग करने से कृषि उत्पादन भी लगभग स्थिर हो जाता है। सभी समस्याओं से निजात पाने के लिए जिला के किसानों द्वारा प्राकृतिक खेती को अपनाया जा रहा है। प्राकृतिक खेती को अपनाकर जहाँ किसानों की आय में वृद्धि हो रही है तो वहीं उत्पादन भी बढ़ रहा है। आधुनिक युग में प्राकृतिक खेती को अपनाकर हरोली के विजय कुमार अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं। विजय कुमार प्राकृतिक व जैविक खेती करके फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता को बढ़ाया। फसल उत्पादन को बढ़ाने के लिए वह जीवामृत व घनजीवामृत का प्रयोग कर अन्य किसानों में भी एक नई सोच विकसित कर रहे हैं। किसान विजय कुमार से प्रभावित होकर उन्हें प्रेरणा का स्त्रोत मान रहे हैं और प्राकृतिक खेती की ओर रूख कर रहे हैं। जिला ऊना के गांव हरोली के प्रगतिशील किसान विजय कुमार ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है। वैसे तो विजय कुमार वर्ष 2000 से खेती कर रहे हैं। लेकिन साल 2019 में उन्होंने प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाएं। उन्होंने कृषि विभाग के माध्यम से आत्मा प्रोजैक्ट के तहत दो दिन की टेªनिंग ली। जीवामृत व घनजीवामृत से बढ़ाया उत्पादन व गुणवत्ताविजय कुमार बताते हैं कि टेªनिंग के उपरांत सबसे पहले उन्होंने निजी भूमि के दो कनाल रकबे पर मक्की की फसल प्राकृतिक विधि से करना आरंभ किया। प्राकृतिक विधि से अच्छी पैदावार और कम लागत होने के कारण रसायन मुक्त खेती की बजाए काफी ज्यादा मुनाफा हुआ। मक्की की फसल के अच्छे परिणाम मिलने के चलते उन्होंने 55 कनाल भूमि पर गेहूं की फसल प्राकृतिक तकनीक से उगाई। गेहूं की फसल में देशी विधि से तैयार जीवामृत, घनजीवामृत व अग्नेयास्त्र जैसे घटकों का प्रयोग किया जिससे ज्यादा लागत वाले रसायनिक पदार्थों से छुटकारा मिला, साथ ही कम लागत पर गेहूं की ज्यादा पैदावार हुई।तीन लोगों को दिया रोजगारविजय कुमार कहते हैं कि वर्तमान में वह प्राकृतिक तकनीक से सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में वह बैंगन, खीरा, रामतौरी, करेला, हल्दी, लॉकी, नीबू, सेब, गलगल आदि की खेती कर रहे हैं। खेती करने के लिए उन्होंने अपने पास तीन व्यक्तियों को स्थाई रोजगार भी उपलब्ध करवाया है। सप्ताह में 6 क्विंटल के करीब सब्जियों का कर रहे उत्पादनविजय कुमार प्रतिमाह कमा रहे 20 हज़ार रूपये का मुनाफाउन्होंने बताया कि उगाई गई हरी सब्जियां स्थानीय लोग घर से ही क्रय कर लेते हैं। शेष बची सब्जियों को वह ऊना सब्जी मंड़ी में बेचते हैं। विजय कुमार सप्ताह में लगभग 6 क्विंटल सब्ज़ी का उत्पादन करके रहे हैं। सभी खर्चों को निकालकर विजय कुमार प्रतिमाह 20 हज़ार रूपये का मुनाफा कमा रहे हैं।विजय कुमार मानते हैं कि रसायनों के भरोसे लंबे समय तक खेती करना संभव नहीं। इससे मिट्टी तो खराब होती ही है, साथ ही इंसानी सेहत से भी खिलवाड़ होता है। उन्होंने लोगों से भी प्राकृतिक खेती को अपनाने का आग्रह किया ताकि लोग स्वस्थ्य रहें।देसी गाय खरीदने हेतू सरकार से 25 हज़ार रूपये की मिली सहायताविजय कुमार ने प्रदेश सरकार का धन्यवाद करते हुए कहा कि राज्य सरकार व कृषि विभाग प्राकृतिक खेती के लिए काफी प्रोत्साहन दे रहे हैं। कृषि विभाग ने उन्हें न सिर्फ प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी दी, बल्कि आर्थिक सहायता भी प्रदान की। विभाग ने देशी गाय खरीदने के लिए 25 हज़ार रूपये की सहायता मुहैया करवाई साथ ही जीवामृत को बनाने के लिए ड्रम उपलब्ध करवाने हेतू 75 प्रतिशत अनुदान दिया गया। देसी गाय के मूत्र एकत्रित करने के लिए लाईनिंग हेतू 8 हज़ार रूपये की सबसिड़ी तथा साधन बढ़ाने के लिए 10 हज़ार रूपये की सबसिड़ी मिली। इसके अलावा समय-समय पर बीज खरीद के लिए विभाग से मदद मिलती रहती है।
जिला में 11,719 किसानों ने अपनाई प्राकृतिक खेतीपरियोजना उपनिदेशक संतोष शर्मा ने बताया कि जिला में 1,401 हैक्टेयर भूमि पर किसानों द्वारा प्राकृतिक तकनीकी से खेती की जा रही है। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक तकनीक से खेती करने के लिए अब तक जिला में 16,137 किसानों को प्रशिक्षित किया जा चुका हैं जिसमें से 11,719 किसान प्राकृतिक खेती को अपनाकर अपनी आजीविका कमा रहे हैं। उन्होंने बताया कि खंड हरोली में लगभग 2 हज़ार किसान प्राकृतिक खेती से जुडे़ हैं। संतोष शर्मा ने बताया कि जिला में लगभग 186 किसानों को साहिवाल, गिर, थारपरकर, सिन्धी व पहाड़न नसल की देसी गायें उपलब्ध करवाई हैं। उन्होंने बताया कि 5,620 ड्रम जिला स्तर पर किसानों को प्राकृतिक खेती हेतू विभिन्न प्रकार के घटक तैयार करने के लिए 75 प्रतिशत अनुदान पर मुहैया करवाए गए हैं। देसी गाय के गौमूत्र को इकट्ठा करने के लिए 288 किसानों के घरों में काऊ शेड लाईनिंग करवाई गई है। इसके अलावा 86 किसानों को संसाधन भंडार दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि संसाधन भंडार भी किसानों के लिए एक आय का स्त्रोत है क्यांेकि जिन किसानों के पास गाय रखने के लिए जमीन नहीं हैं वे किसान संसाधन भंडार से विभिन्न घटकों की सामग्री को खरीद सकते हैं।परियोजना उपनिदेशक ने बताया कि विजय कुमार वर्ष 2019 से दो दिवसीय प्रशिक्षण के उपरांत प्राकृतिक खेती से जुडे़। उन्होंने बताया कि विजय कुमार प्राकृतिक खेती में काफी अच्छा कार्य कर रहे हैं। पहले वह अनाज़ ही उगाते थे लेकिन इस वर्ष से विजय कुमार प्राकृतिक विधि से विभिन्न प्रकार की सब्जियां भी उगा रहे हैं। उन्होंने बताया कि विजय कुमार का अपना खुद का संसाधन भंडार भी जिसमें देसी गाय के गौमूत्र से सभी प्रकार के घटक तैयार करते हैं तथा आसपास के इलाके के लोग भी प्राकृतिक खेती हेतू तैयार किए घटक उनसे ले जाते हैं। प्राकृतिक खेती करने हेतू किसानों को दिया जाता है प्रशिक्षणउन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती करने के लिए सबसे पहले किसानों को दो दिवसीय प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें किसानों को प्रैक्टिकल करवाकर जरूरी वनस्पतियांे के बारे में बताया जाता है। उन्होंने बताया कि देसी गाय तथा अन्य प्रकार की सहायता के लिए किसानों को पहले छः महीने प्राकृतिक खेती से जुड़ना पड़ता है उसके उपरांत ही किसान प्राकृतिक विधि से खेती करने हेतू किसी भी प्रकार की अन्य मदद के लिए योग्य होते हैं।उन्होंने बताया कि खंड स्तर पर ब्लॉक टैक्निकल मैनेज़र और टैक्निकल मैनेज़र व सहायक टैक्निकल मैनेज़र समय-समय पर प्राकृतिक विधि से उगाई गई फसलों का निरीक्षण करते रहते हैं और उन्हें प्राकृतिक खेती से संबंधित जानकारियां मुहैया करवाते रहते हैं ताकि खेती कर रहे किसानों को किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना न करना पडे़। संतोष शर्मा ने बताया कि जिला में किसानों की दिन प्रतिदिन रूचि प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ी है। उन्होंने जिला के समस्त किसान वर्ग से आहवान किया कि वे ज्यादा से ज्यादा संख्या में प्राकृतिक खेती को अपनाएं ताकि स्वयं व अन्य लोगों के जीवन को रसायनिक खेती से मुक्त करके स्वास्थ्यवर्धक बना सके।
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